मेरी अभिलाषा - हिंदी सम्राट श्री माखनलाल चतुर्वेदी को समर्पित
बहा दे दिलों में जो प्रेम की धारा, मैं उस सागर का मीठा पानी बनूँ,
जोड़ दे दिलों को दिलों से जो, मैं उस अनेकता में एकता की कहानी बनूँ,
देश के सम्मान में जो सर कटा दे अपना, मैं वो सच्चा हिंदुस्तानी बनूँ,
घमण्ड में लिप्त हो निज स्वार्थ जिसका, मैं न वो अभिमानी बनूँ,
प्रेम प्रसार हो निज भावना जिसकी, में वो बंदा स्वाभिमानी बनूँ,
रख सके जो लाज अपनी मातृभूमि की, मैं उस गौरव की कहानी बनूँ,
अलख जगा दे जो भाईचारे की, मैं उन करोङो भारतीयों की वाणी बनूँ,
कर सके जो अपने निज संस्कारों का पालन, मैं वो अखंड ज्ञानी बनूँ,
समर्पित हो जीवन जिसका राष्ट्र की सेवा में, मैं वो दिलेर दानी बनूँ,
वसुधैव कुटुम्बकम हो राग जिसका, मैं उस वतन की अमिट कहानी बनूँ,
"मैं भारत के चरण-रज की निशानी बनूँ"
"मैं भारत के चरण-रज की निशानी बनूँ"
----- अंगद यादव
जोड़ दे दिलों को दिलों से जो, मैं उस अनेकता में एकता की कहानी बनूँ,
देश के सम्मान में जो सर कटा दे अपना, मैं वो सच्चा हिंदुस्तानी बनूँ,
घमण्ड में लिप्त हो निज स्वार्थ जिसका, मैं न वो अभिमानी बनूँ,
प्रेम प्रसार हो निज भावना जिसकी, में वो बंदा स्वाभिमानी बनूँ,
रख सके जो लाज अपनी मातृभूमि की, मैं उस गौरव की कहानी बनूँ,
अलख जगा दे जो भाईचारे की, मैं उन करोङो भारतीयों की वाणी बनूँ,
कर सके जो अपने निज संस्कारों का पालन, मैं वो अखंड ज्ञानी बनूँ,
समर्पित हो जीवन जिसका राष्ट्र की सेवा में, मैं वो दिलेर दानी बनूँ,
वसुधैव कुटुम्बकम हो राग जिसका, मैं उस वतन की अमिट कहानी बनूँ,
"मैं भारत के चरण-रज की निशानी बनूँ"
"मैं भारत के चरण-रज की निशानी बनूँ"
----- अंगद यादव
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